भारत समाज – जात का विश्लेषण
पद्मिनी अरहंत
India – Caste System
Padmini Arhant
सृष्टि के शीर्षक और रचयिता ने बनाये सुन्दर सृष्टि | मानव और अन्य जीव जंतु प्राणी जन्मा इस विशाल सृष्टि के एक ग्रह जो गोल बिंदु है जिसे पृथ्वी माना जाता है | मानव के उद्र्म से केवल भारत एक देश है जहाँ धर्म के अलावा जाती का मदभेद से लिपि कठोर और पिछड़ा साम्प्रदायक इस २१ सदी तक निरंतर है |
वेद और शास्त्र का दुर उपयोग करके धर्म की राजनीति अब तक चल रहा है | इस पुरानी रीति को भरिष्कार करने के बदले इसे बढ़ावा देकर भारत की हर एक राजनीती दल अपनी अपनी सियासत की रोटी सेकते आएं हैं अब तक | जो देश और समाज के लिए बहुत बड़ा दाग और दब्बा है| राजनीती के लिए अहम् पासा और मोहरा बना है यह जात का सिलसिला |
इस जाती के परंपरा मैं भगवान को गसीढ़कर धर्म के आध्यात्मिक पवित्रता को ही नष्ट कर रहे हैं |
यह कौन है जो सदियों पुराना मदभेद से उबरा इस जाती रोग में अब तक लिपटे हुए हैं ? जात से जुड़ा हुआ भेदभाव का दूसरा नाम दिया है वर्णाश्रम जो जात परिभाषा को और कट्टर पंती रूढ़िवादी मैं बदल रहा है | ये सब अपने स्वार्थ और अज्ञानता का प्रदर्शन है |
हालाँकि हम भली बाती जानते हैं कौन किन के विचार धारा समाज के विभाजन के पीछे है ?
जो जात और धर्म का व्यापार करते हैं राजनीती में सत्ता पाने के लिए या कायम रहने के लिए जो सर्व अपमान है | न हीं उनकेलिए मगर पूरे देश और समाज के लिए भी है | इस दुर्गति के प्रति समाज का मौन सहमति में दर्शिता है |
अब बारी आती है इस जाती संप्रदाय को समर्थन देने वाले और बनाये रखने वालों को इन प्रश्नों की उत्तर देने की समय है | क्यों की जो अपने आप को ऊंचे कुल के लोग और वर्ग में घोषणा करने वाले भला उनके छोटेपन के अनुसार एक सूद्र महिला के पीछे हाथ धोके पड़ने का क्या कारण हो सकता है?
और तो और वर्त्तमान में – क्यों अधिक मात्रा में ब्राह्मण स्त्रियां राजनीती, मनोरंजन और अन्य क्षेत्र में उनकी जैसे भी दर्जा हो सफलता असफलता को लेकर, उनके अनुमान में उच्च कुल के ऊंचे विचार के अनुसार इस सूद्र महिला की कठिन परिश्रम और अस्तित्व पर हावी होने का क्या उद्देश्य है ?
अब देखा जाये तो जितने भी ब्राह्मण स्त्रियां जो ऊपर कहे हुए राजनीती, मनोरंजन और अन्य क्षेत्र में इस संदर्भ सूद्र महिला की विकल्प और विनिमय बनी बैठी हैं जो पूरी तरह से भारत के जाती व्याधि को और तीव्र करता है |
इस अवसर को अंतर्राष्ट्रीय गिरोह अपनी लाभ में बदल लेता है | जिस मे कोई आश्चर्य नहीं क्यों की यही भारत की विरासत है जो पुरकों से चला आ रहा है |
ऐसा व्यवहार अगर विपरीत होता जैसे की उनके निर्देश में इस सूद्र महिला इन ऊंचे ब्राह्मण कुल वतियों की जगा इनसे छीन लें तो – तत्काल के कट्टर वादी समाज और उससे भी पहले समय में इस तथाकथित सूद्र महिला को बलि चढ़ा देते जो वैसे भी अभी हो रहा है – निर्भया के नामकरन के ज़रिये |
क्या ब्राह्मण और अन्य उच्चतर वर्ग में अपने आप को श्रेणीबद्ध करने वाले एक सूद्र महिला का अधिकार हड़पना उनके तथाकथित उच्चत्तम पर कलंक नहीं हैं ?
वैसे देखा जाए तो उनका यह प्रथा स्वाभाविक रहा है जिसके कारण ही यह जाति व्यवस्था भारतीय ऐतिहास और हिन्दू धर्म के लिए भारी अवस्ता और पीड़ा है |
जहाँ तक उन्नति का सवाल है, जाती जैसे एक सामाजिक विपत्ति को बढ़ौती देकर ईश्वर के बनाये हुए सृष्टि में मानवता के बदले निर्दयी और अमानवीय अमानुषी स्वरुप धारण कर लिया है |
इसमें गर्व की कोई बात नहीं है | फ़िर भी जो जाती के पूजारी हैं ब्राह्मण और उनके नीचे स्थापित किया गया वर्ग जैसे दुसरे तीसरे स्थान इत्यादि और कट्टर वादी जो जात को अपनी पहचान मानते हैं | उनकेलिए शायद वे इस विषय पर परिचित नहीं है की यह मिथ्या एक छल है जो लम्बे समय से अभी तक इसके प्रचारण करने वाले की स्वार्थ और अज्ञानता को ही प्रदर्शित किया है |
वास्तव में जब कोई भी जीव की मृत्यु होती है, तब उस जीव की शरीर के साथ उनकी परिचय जैसे उनका उस जनम के किस्से उस आत्मा के लिए मिट जाता है | उनके जात पात और अनेक विवरण जैसे समुन्दर में बहते रेत की तरह बह जाता है | हर एक आत्मा के संग केवल उनके उस जनम और पूर्व जनम के कर्म का मान्य है | इसके अलावा सभी आत्मा के लिए और कुछ महत्व नहीं है |
इस धरती से विदा होने पर केवल कर्म से सम्बन्ध पाप और पुण्य ही आत्मा के अंतिम स्थान का निर्णय बनता है | न की उस आत्मा के नष्ट हुए अंग के जानकारी जैसे ऊंचे कुल, पदवी, रंग रूप वगैरा जो आग में जलकर राख हो जाता है |
जहाँ तक जिन्हें पृथ्वी पर छोड़ जाते हैं जो उनके वंश कहलाये जाते हैं, जब वे भूमि में उनके पूर्वक को पिंड दान करते हैं – जो हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार माना जाता है वो उस पूर्वी पीड़ी के जितने भी क़र्ज़ है उनके पाप या बुरे व्यवहार को लेकर, उससे वे स्वयं मुक्त पाने के लिए किया जाता है | फ़िर भी सभी आत्मा को अपनी करनी भुक्तना होता है |
इस जनम मरण के चक्रव्यूह में फसकर बार बार कर्म भूमि में प्रवेश होना है जब तक अपनी सारी ऋण चुका दिया न जाए |
जब हर कर्ज़दार जो किसी से भी उदार लेते हों उनकी यही हाल है इस धरती पर तो प्रकृति के नियम तो न्याय और आत्मा की निवारण और मुक्ति के लिए स्थिर है |
हाँ यह भी अवश्य नहीं की धरती पर हर बार पदारते समय मनुष्य रूप ही प्राप्त हो | वो भी कर्म के अनुसार ही मिलता है |
जैसे करनी वैसे भरनी पड़ती ही | इस सत्य को कोई भी जीव न टाल सकते हैं और न ही नकार सकते हैं |
ऐसे होते हुए – द्वेष, द्रोह, डाह, दुष्ट भाव, बदख़्वाहता, घृणा, क्रोध, ईर्षा से भरे जाती के बेड़ी और हथकड़ी से निकलकर मानव और अन्य जीव प्राणी पर दया और सम्मान देना ही मूल मंत्र है आत्मा, समाज एवं देश और पूरे विश्व कल्याण के लिए |
सत्यमेव जयते | इस का भी गलत प्रयोग किया जाता है इस कलयुग में जो करने वाले और सहयोगियों के लिए अनुचित है |
जाती के बंदिश से समाज और भारत की मुक्ति अनिवार्य है | इसी में धर्म और मानवता की श्रेय और सौजन्य है |
जय मानव कल्याण |
जय भारत |
पद्मिनी अरहंत
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