भारत – राजनीति एक कटी पतंग
पद्मिनी अरहंत
ना कोई उमंग है, न कोई तरंग है, भारत की राजनीती एक कटी पतंग है ।
क्यों की पतंग की डोर जनता के हाथ नहीं है । फ़िर भी लोक तंत्र कहलाया जाता है ।
राजनीति असलियत – ख़ास उद्योगपति डोर खींचे तो राष्ट्र प्रधान मुख्या दौड़ा चला आये । कच्चे दागे में जैसे बंधा चला आये । ऐसे जैसे कोई दीवाना ।
फ़िर वो मिले ऐसे झप्पी और पप्पी दिये – जो प्रधान मुख्या जी की ख़ासियत है और कहे एक दूसरे से –
हम बने तुम बने एक दूजे के लिए । देश से बढ़कर है हमारी यह दोस्ती और देश वासियों की क़सम अगर प्रधान मुख्या कि ध्यान ख़ास उद्योगपति के अलावा देश की जनता और उनकी समस्या पर पड़े ।
अंत में कहे – तू जो मेरे सुर में सुर मिलाले संग गाले तो कारोबार हो जाये सफल ।
उसके प्रति दोनों की और से ———-यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे । तोड़ेंगे देश मगर आप यानी ख़ास उद्योगपति आप का साथ ना छोड़ेंगे ।
क्योंकि आप की जीत हमारी जीत, आपकी हार देश की हार ऐसा अपना प्यार । उटना बैठना आपके साथ है । आपके कारोबार सम्भालना हमारा परम धर्म है । पूरी सियासत में आप ही आप समाये रहे । यही हमारे प्रथम और निरंतर लक्ष्य है ।
ख़ास उद्योगपति जी भारत के प्रधान मुख्या जी से बोले – टीक है फिर – जो वादा किया वो हमेशा निभाना पड़ेगा । रोके देश वासी या ज़माना चाहे, रोके खुदाई तुमको हमेशा हमारा साथ देना होगा ।
तो प्रधान मुखया जी बोले – जान से भी खेलेंगे आपके लिये मोल लेंगे सबसे दुश्मनी । क्योंकि क़ानून हमारे ही वश में है ।
ख़ास उद्योगपति जी प्रसन्न होकर कहे – तेरे जैसा यार कहाँ ? कहाँ ऐसा याराना । याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफ़साना । मेरे दिल की यह दुआ है की दूर तू ना जाये । तेरे बिना घोटाला सम्भालना वो दिन कभी ना आये ।
जनता बोले – जायें तो जाये कहाँ ? गोलमाल है भाई सब गोलमाल । लोकतंत्र के नाम पर उद्योग पति का मंत्र जपता है दिन महीने साल गुज़रजाये । गोलमाल है भाई सब गोल माल ।
पद्मिनी अरहंत
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